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पेसा नियमावली को लेकर राज्य सरकार पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का हमला

 

पेसा नियमावली को लेकर राज्य सरकार पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का हमला

पेसा के नाम पर आदिवासियों को “लॉलीपॉप” दिखा रही है सरकार, नियमावली जल्द सार्वजनिक करने की मांग

रांची। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई पेसा (पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्र) अधिनियम, 1996 की नियमावली पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से बनाई गई नियमावली पेसा अधिनियम के मूल प्रावधानों और उसकी भावना के विपरीत है।

रघुवर दास ने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित जानकारी के अनुसार सरकार ने ग्राम सभा की परिभाषा में परंपरागत जनजातीय व्यवस्था और रूढ़िगत नेतृत्व को सीमित कर दिया है, जबकि अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा की अवधारणा परंपरागत रीति-रिवाजों और सामाजिक संरचना के अनुरूप की गई है।

उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों की पारंपरिक ग्राम नेतृत्व व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि संथाल समाज में मांझी-परगना, हो समाज में मुंडा-मानकी-दिउरी, खड़िया समाज में ढोकलो-सोहोर, मुंडा समाज में हातु मुंडा, पड़हा राजा और पाहन, उरांव समाज में महतो, पड़हावेल (राजा) और पाहन तथा भूमिज समाज में मुंडा, सरदार, नापा और डाकुआ जैसे पदों को सदियों से मान्यता प्राप्त रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पेसा अधिनियम 1996 की धारा 4(क), 4(ख), 4(ग) और 4(घ) में स्पष्ट रूप से यह व्यवस्था की गई है कि ग्राम सभा का गठन, संचालन और प्रतिनिधित्व जनजातीय समुदायों की परंपराओं, रूढ़ियों, सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं और संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन के अनुरूप होगा। इसके बावजूद राज्य सरकार की नियमावली में इन प्रावधानों की अनदेखी की गई है।

उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नई नियमावली के तहत ग्राम सभा की अध्यक्षता ऐसे लोगों को दी जाएगी, जो परंपरागत जनजातीय व्यवस्था से नहीं आते या जिनकी पृष्ठभूमि संबंधित समुदाय की परंपराओं से भिन्न है। इस संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं होना गंभीर चिंता का विषय है।

रघुवर दास ने कहा कि पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को लघु खनिज, बालू घाट, वन उत्पाद और जल स्रोतों जैसे सामूहिक संसाधनों पर पूर्ण प्रबंधन और नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। उन्होंने पूछा कि क्या वास्तव में इन संसाधनों पर ग्राम सभा का अधिकार सुनिश्चित किया जाएगा या फिर पूर्व की तरह सरकारी नियंत्रण बना रहेगा।

प्रेस वार्ता के अंत में उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार कैबिनेट स्तर पर नियमावली बनाकर आदिवासी समाज को केवल “लॉलीपॉप” दिखाने और उनकी आंखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासी रूढ़िवादी व्यवस्था को समाप्त करना नहीं, बल्कि उसे कानूनी संरक्षण देकर और अधिक सशक्त बनाना है, ताकि आदिवासी समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक न्याय प्रणाली और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार बनाए रख सके।

पूर्व मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार से मांग की कि राज्य की जनता की भावना के अनुरूप पेसा नियमावली को जल्द सार्वजनिक किया जाए।

प्रेस वार्ता में पूर्व विधायक रामकुमार पाहन, योगेन्द्र प्रताप सिंह, अशोक बड़ाईक और रवि मुंडा भी उपस्थित थे।

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